हेलो दोस्तों, अच्छाज्ञान ब्लॉग पे कहानियों का सिलसिला जारी हैं और इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज एक बार फिर से मैं आपके लिए लेकर आया हूँ हिंदी की रौचक कहानियां (Hindi Ki Rochak Kahaniya). मैं उम्मीद करता हूँ कि आज की ये Hindi Ki Rochak Kahaniya भी आपको बेहद पसंद आएंगी।
तो आईये चलते हैं कहानियों के सफर पे और पढ़ते हैं Rochak Kahaniyan in Hindi
Hindi Ki Rochak Kahaniya
-: अंधेर नगरी चौपट राजा :-
एक बार की बात हैं। एक गुरू और शिष्य दोनों एक अन्जान नगर में पहुँचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उस शहर में सबकुछ बहुत सस्ते में मिलता था और सबका भाव भी एक समान था।
यानि एक टका में चाहे एक किलो सब्जी लो चाहे एक किलो सोना लो सबका भाव एक समान ही था। उसमे ज़रा भी ऊंच नीच नहीं थी।
इस प्रकार वहां के माहौल को देखते हुए चेला बहुत खुश हुआ। उसके तो जैसे अब मजे ही हो गए। उसे अब वहां का माहौल खूब पसंद आने लगा।
लेकिन उसके गुरु को ये बात बिल्कुल ठीक नहीं लगी। उन्होंने अपने चेले से कहा कि वत्स अब ज्यादा दिन यहाँ रहना ठीक नहीं हैं। यहाँ का राजा बिल्कुल मुर्ख हैं और उसके राज में गधे घोड़े यानि बुद्धिमान और मुर्ख सब बराबर समझे जाते हैं। अर्थात यह एक मूर्खों की नगरी हैं, अगर यहाँ का राजा कह दे तो दिन को रात और रात को दिन माना जाता हैं।”
इसलिए अब जल्दी ही हमें इस नगरी को छोड़कर कहीं ओर जगह चले जाना चाहिए। अगर हम यहाँ रहे तो कभी भी मुसीबत में फंस सकते हैं।”
गुरू की यह बात चेले को पसंद नहीं आयी। उसने कहा कि गुरूजी मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता। फिर भी अगर आप जाना चाहते हैं तो आप चले जाईये। मैं तो अब यहीं पर रहना चाहता हूँ।
गुरूजी ने अपने चेले को खूब समझाया कि वो उनकी बात मान ले और उनके साथ दूसरी जगह चले लेकिन चेले ने अपने गुरु की एक न सुनी।
अब गुरूजी ने अकेले ही जाने का निश्चय किया और जाते जाते उन्होंने अपने चेले से कहा – देखो वत्स! अब जैसी तुम्हारी इच्छा। फिर भी तुम अपना ख्याल रखना और अगर कभी मुसीबत आन पड़े तो एक बार मुझे जरूर याद कर लेना। मैं उसी समय तुम्हारी मदद के लिए आ जाऊंगा।
और ऐसा कहकर गुरूजी अकेले ही वहां से चले गए।
अब चेला अकेला ही खूब मजे से रहने लगा और खूब खा खाकर थोड़े ही दिनों में वो मोटा हो गया।
अब एक दिन अचानक जोरदार बारिश हुई जिसके कारण एक घर की दीवार टूट गयी और उसके नीचे दबने से एक बकरी की मौत हो गई।
अब बकरी के मालिक ने वहां के राजा से शिकायत कर दी। राजा ने जब बकरी के मालिक को बुलाया तो उसने कहा कि पड़ौसी की दीवार गिरने से मेरी बकरी की मौत हुई हैं।
तो राजा ने उसके पड़ौसी को बुलाया और उससे पूछा -“देखो तुम्हारी दीवार गिरने से एक बकरी की मौत गयी हैं। अब इसकी सजा मौत हैं।”
ये सुनकर वो आदमी घबराकर बोला – “नहीं राजा साहब! इसमें मेरी कोई गलती नहीं हैं। दरअसल ये सारी गलती तो उस दीवार को चुनने वाले कारीगर की हैं। शायद उसी ने दिवार ठीक से नहीं बनायीं होगी तभी वो बारिश से गिर गयी।”
तो राजा ने उस कारीगर को भी बुलाया और उससे कहा – ” देखो तुमने कैसी घटिया दीवार चुनी हैं जो एक ही बारिश में गिर पड़ी और जिससे एक बकरी को मौत हो गयी हैं। इसलिए अब मैं तुम्हें फांसी की सजा देता हूँ।”
ये सुनकर कारीगर बहुत घबरा गया और उसने कहा – “महाराज! इसमें मेरी कोई गलती नहीं हैं क्यूंकि मैंने तो पूरी ईमानदारी से उस दीवार को चुना था। अब ये तो उस व्यक्ति की कमी हो सकती हैं जिसने उस समय दीवार का मसाला तैयार किया था।”
“लगता हैं उसी ने ठीक से मसाला तैयार नहीं किया होगा। यदि वो पूरी ईमानदारी से काम करता तो आज वो बकरी जिन्दा होती।”
अब राजा ने उस व्यक्ति को भी दरबार में बुलाया और उससे कहा – “देखो तुमने कितना घटिया काम किया हैं, तुमने उस दीवार को चुनने का मसाला भी ठीक से तैयार नहीं किया। तुमने सरासर कामचोरी की हैं। अतः अब तुम्हें फांसी की सज़ा दी जाती हैं।
ये सुनकर वो आदमी बहुत रोया और उसने राजा से खूब मिन्नते की कि उसकी जान बख्श दी जाये लेकिन राजा अपने फैसले पर कायम रहा।
अब फांसी का फंदा तैयार किया जाने लगा। जब उस आदमी को फांसी दी जाने लगी तो फांसी का फंदा उसके गले में ढीला रह गया। यानि फंदा थोड़ा ज्यादा बड़ा बन गया था।
अब क्या किया जाये क्यूंकि फंदा थोड़ा बड़ा बन गया फिर भी फांसी तो हर हाल में दी जानी थी फिर चाहे किसी दूसरे को ही क्यों न देनी पड़े। इसके लिए अब ऐसे आदमी की तलाश की जाने लगी जिसके गले में वो फांसी का फंदा फिट बैठ सकें।
अब राजा के सिपाही ऐसे व्यक्ति की तलाश करते हुए उसी चेले के घर तक जा पहुंचे। उन्होंने उस चेले को पकड़ा और जब उसके गले का नाप लिया तो फंदा एकदम फिट बैठ गया। अब सिपाही उस चेले को लेकर आये और फांसी पर चढ़ाने की तैयारी करने लगे।
ये देखकर चेला बहुत घबरा गया। उसने राजा से खूब मिन्नतें की कि उसकी जान बख्श दी जाये क्यूंकि उसने तो कोई गुनाह ही नहीं किया हैं।
लेकिन राजा ने उसकी भी बात नहीं सुनी और चेले से कहा – “देखो युवक हम किसी और को फांसी की सजा का हुक्म सुना चुके हैं लेकिन उसके गले में ये फंदा बहुत ढीला हैं। इसलिए उसके बदले में अब तुम्हें फांसी दी जा रही हैं। अब मैं अपना हुक्म तो वापस नहीं ले सकता। इसलिए इस फंदे पर किसी को तो झूलना ही पड़ेगा न!”
अब तो चेला बहुत घबरा गया क्यूंकि मौत अब उसे अपने सामने ही नजर आ रही थी। तभी उसे अपने गुरु की बात याद आयी और उसने मन ही मन अपने गुरु को याद किया।
इसके बाद उसके गुरु राजा के दरबार में पहुँचे और कहा- “हैं वत्स ये तो तुम्हारे लिए बहुत सौभाग्य की बात हैं कि तुम ऐसे समय मृत्यु को प्राप्त हो रहे हो जब ऐसा योग बन रहा हैं जब मृत्यु को प्राप्त होने वाला सीधा परमात्मा से मिलता हैं। यानि उसे स्वर्ग में जगह मिलती हैं और उसे हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती हैं।”
ये सुनकर राजा ने कहा – “हैं गुरुवर! अगर ऐसा हैं तो फिर मैं स्वयं ही इस फांसी पर चढूँगा।”
फिर उसने सैनिकों को हुक्म दिया कि अब फांसी के फंदे पर उस यूवक को नहीं बल्कि उसे ही फांसी पर चढ़ाया जाये।
इसके बाद राजा को जल्दी से फांसी पर चढ़ा दिया गया। और इस प्रकार एक चौपट राजा अपनी ही मूर्खता से मारा गया।
कहानी से शिक्षा: जिस देश का राजा मुर्ख हो वहां न्याय की उम्मीद करना बेकार हैं।
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-: कौवा और सोने का हार :-
एक जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था जिस पर एक कौवा और उसकी पत्नी दोनों घौंसला बनाकर रहते थे। एक दिन कौवे की पत्नी ने पांच अंडे दिए। अब वो दिनरात उन अंडो की देखभाल करने लगी। कौवा भी भोजन की तलाश में चला जाता।
उस पेड़ के नीचे बिल में एक खतरनाक और जहरीला सांप भी रहता था। एक दिन मौका पाकर वो सांप कौवे के घौंसले तक जा पहुंचा। उस समय घौंसले में कौवे की पत्नी अपने अंडो की देखभाल कर रही थी।
जब उसने जहरीले सांप को देखा तो उसने अपने अंडे बचाने की खूब कोशिश की लेकिन वो सांप से अपने अंडे नहीं बचा पायी। और देखते ही देखते सांप कौवे के सभी अंडे खा गया।
जब कौवा वापस लौटा तो उसकी पत्नी ने रोते हुए कौवे को सारी बात बताई। वे दोनों अब बहुत परेशान थे क्यूंकि अगली बार भी उनके साथ ये ही होने वाला था। इसलिए कौवे ने उस जहरीले सांप को सबक सिखाने की एक योजना बनाई।
अगले दिन कौवा राजा के महल में गया और मौका पाकर रानी का हार चुराकर उड़ने लगा। ये देखकर रानी ज़ोर ज़ोर से चिल्लाई – “अरे अंगरक्षकों पकड़ो उस कौवे को, देखो वो मेरा कीमती हार चुराकर जा रहा हैं। कैसे भी करके मुझे मेरा हार वापस लाकर दो नहीं तो मैं तुम सबका सिर कलम करा दूंगी।”
ये देखकर रानी के अंगरक्षक उस कौवे का पीछा करने लगे। कौवा अब आगे आगे और अंगरक्षक उसके पीछे पीछे। थोड़ी ही देर बाद अंगरक्षक एक घने जंगल में पहुँच जाते हैं और तभी उन्होंने देखा कि उस कौवे ने रानी के हार को एक बड़े से पेड़ के नीचे बने बिल में गिरा दिया हैं।
उस समय वो जहरीला सांप उस बिल में सो रहा था। और जब अंगरक्षकों ने बिल में से हार को निकालने की कोशिश की तो सांप पर नजर पड़ी। सांप ने भी बिल से बाहर आकर अंगरक्षकों को डसने की कोशिश की लेकिन सबने मिलकर लाठियों से उस जहरीले सांप का काम तमाम कर दिया।
इस प्रकार उस दुष्ट जहरीले सांप का अंत हुआ। ये देखकर कौवा और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए और अब वे दोनों शांन्ति से और ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे।
कहानी से शिक्षा: जहां चाह वहां राह
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-: मुर्ख की दोस्ती :-
एक समय की बात थी एक राजा ने के पालतू बन्दर को अपने सेवक के रूप में रखना शुरू कर दिया। जहां भी राजा जाता, बन्दर भी उसके साथ जाता। राजा के दरबार में उस बन्दर को राजा का पालतू होने के कारण कोई रोक-टोक नहीं थी।
गर्मी के मौसम के एक दिन राजा अपने शयन कक्ष में विश्राम कर रहा था। बन्दर भी शयन कक्ष के पास बैठकर राजा को एक पंखे से हवा कर रहा था। तभी एक मक्खी आई और राजा के सीने पर आकर बैठ गई।
जब बन्दर ने उस मक्खी को बैठे देखा तो उसने उसे उड़ाने का प्रयास किया। हर बार वो मक्खी उड़ती और थोड़ी देर बाद फिर राजा के सीने पर आकर बैठ जाती।
यह देखकर बन्दर गुस्से से लाल हो गया। गुस्से में उसने मक्खी को मारने की ठानी। वह बन्दर मक्खी को मारने के लिए हथियार ढूंढ़ने लगा।
कुछ दूर ही उसे राजा की तलवार दिखाई दी। उसने वह तलवार उठाई और गुस्से में मक्खी को मारने के लिए पूरे बल से राजा के सीने पर मार दी।
इससे पहले कि तलवार मक्खी को लगती, मक्खी वहां से उड़ गई। बन्दर के बल से किए गए वार से मक्खी तो नहीं मरी मगर उससे राजा की मृत्यु अवश्य हो गई।
कहानी से शिक्षा: मुर्ख से दोस्ती करना ठीक नहीं
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I love Your Story. Thank You So Much For Sharing This Nice Story
अंकित जी आपको हमारी रचनाएँ पसंद आयी इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।