इस लेख में आज आप जानेंगे कि वर्षा किसे कहते हैं, वर्षा के प्रकार कौन-कौनसे हैं, विश्व में वर्षा का वितरण कैसा हैं एवं वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौनसे हैं? इसलिए पोस्ट को पूरा जरूर पढ़े।
तो चलिए विस्तार से जानते हैं।
वर्षा किसे कहते हैं?
जलवाष्प से संतृप्त वायु ऊपर उठने पर शीतल हो जाती है एवं संघनित होकर जल कणों में तब्दील हो जाती हैं। फलतः इन जलकणों का भार लटके रहने की सीमा से अधिक हो जाता हैं तो बूंदों के रूप में धरातल पर गिरने लगता हैं, इसे जलवृष्टि या वर्षा कहते हैं।
वर्षा के प्रकार:
आर्द्र वायु के ऊपर उठने के आधार पर वर्षा के तीन प्रकार हैं:
(i) संवहनीय वर्षा (Convenctional Rainfall) किसे कहते हैं?
धरातल के अत्यधिक गर्म होने के फलस्वरूप वायुमंडल में उत्पन्न संवहन धाराओं से होने वाली वर्षा को संवहनीय वर्षा कहा जाता हैं।
संवहनीय वर्षा (Convenctional Rainfall)अल्पकालिक एवं मूसलाधार होती हैं। इसके द्वारा मेघाच्छादन की न्यूनतम मात्रा से अधिकतम वर्षा प्राप्ति होती हैं। इस प्रकार की वर्षा बिजली की चमक एवं बादलों की गरज के साथ होती हैं।
वर्षा मुख्यतः विषुवतीय क्षेत्रों में होती हैं, जहां प्रतिदिन दोपहर तक धरातल के गर्म होने के कारण संवहन धाराएं उठने लगती हैं एवं शाम को घनघोर वर्षा प्रारम्भ होने लगती हैं।
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(ii) पर्वतीय वर्षा किसे कहते हैं?
उष्ण एवं आर्द्र वायु जब पर्वतों से टकराती है तो वः बाध्य होकर ऊपर उठती हैं, इससे जो वर्षा होती हैं उसे पर्वतीय वर्षा कहा जाता हैं।
पर्वतों के द्वारा वायु के ऊपर उठने में जो सहायता मिलती हैं, उसे ट्रिगर प्रभाव (Trigger Effect) कहा जाता हैं। विश्व में पर्वतीय वर्षा ही सर्वाधिक होती हैं।
पर्वतीय वर्षा में पवन विमुख (Leaward Side) की तुलना में पवनभिमुख ढालों पर वृष्टि की मात्रा काफी अधिक होती हैं। इसका कारण यह हैं पावनाभिमुख ढालों पर अधिक वर्षा करने के कारण हवा में जलवाष्प की मात्रा काफी कम हो जाती हैं।
साथ ही पवन विमुख ढालों पर हवा जब नीचे उतरती हैं तो वह क्रमशः गर्म होती जाती हैं। इस प्रकार पवन विमुख ढाल एवं उनके आस-पास की निम्न भूमि में अपेक्षाकृत काफी कम वर्षा होती हैं।
इन्हें वृष्टि छाया क्षेत्र (Rain Shadow Area) कहा जाता हैं। उदाहरणस्वरूप महाबलेश्वर एवं पुणे के एक-दूसरे के निकट स्थित होने के बावजूद पावनाभिमुख ढाल पर स्थित होने के कारण महाबलेश्वर में वार्षिक वर्षा की मात्रा 600 से. मी. हैं, जबकि पुणे में मात्र 70 से.मी. वर्षा होती हैं।
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(iii) चक्रवाती या वाताग्री वर्षा किसे कहते हैं?
दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं जब आपस में टकराती हैं तो वाताग्र (Front) का निर्माण होता हैं। इस वाताग्र के सहारे गर्म गर्म वायु ऊपर की ओर उठती है एवं वर्षा होने लगती हैं।
यह वर्षा मुख्य रूप से शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में शीतोष्ण चक्रवातों द्वारा होती हैं। इस वर्षा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह हैं कि इस प्रकार की वर्षा मूसलाधार नहीं हैं, बल्कि सालोंभर फुहारों के रूप में होती हैं।
वर्षा का वितरण:
संसार में औसत वार्षिक वर्षा मात्र 97 से.मी. होती हैं। भूमध्य रेखा के दोनों ओर 10० अक्षांश तक काफी अधिक वर्षा होती हैं।
दोनों ही गोलार्धों में 10० से 20० के बीच व्यापारिक हवाओं द्वारा महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा होती हैं, जबकि पश्चिमी भागों में शुष्कता होती हैं।
दोनों गोलार्धो में 20० से 30० अक्षाशों के मध्य वायु के नीचे उतरने के कारण प्रति-चक्रवातीय परिस्थितियों का निर्माण होता हैं, फलस्वरूप वर्षा नहीं हो पाती हैं। विश्व के सभी उष्ण मरुस्थल इन्हीं अक्षांशों के बीच स्थित हैं।
30० से 40० अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर जाड़े में वर्षा होती हैं, क्यूंकि यह भाग पवन पेटियों में खिसकाव के कारण शीत ऋतु में पछुआ पवन के प्रभाव में आ जाता हैं।
महासगरों की ओर से आने के कारण ये पवनें वर्षा लाती हैं।
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दोनों गोलार्धों में 40० से 60० अक्षांशों के बीच पछुआ हवाओं द्वारा वर्षा होती हैं। इसे द्वितीय अधिकतम वर्षा की पेटी कहा जाता हैं।
60० अक्षांश से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती हैं, एवं 75 से.मी. ही रह जाती हैं। वैसे स्थानीय तूफान या झंझावत, जिनमें ऊपर की ओर तीव्र हवाएं चलती हैं तथा बिजली की चमक एवं बादलो की गरज के साथ घनघोर वर्षा होती हैं मानो मेघ ही फुट पड़े हों। इस प्रकार की वर्षा को वर्षा प्रस्फोट (Cloud Burst, बादल फटना) कहा जाता हैं।

वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक कौनसे हैं?
- समुद्र से दुरी
- भूमध्य रेखा से दूरी
- महासागरीय धाराएं
- प्राकृतिक वनस्पति
- चक्रवातों का विकास
- प्रचलित पवनें
- धरातल
आखिर में,
इस लेख में आपने जाना कि वर्षा किसे कहते हैं, वर्षा के प्रकार कौन कौनसे हैं, वर्षा का वितरण कैसा हैं एवं वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौनसे हैं?
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