भारत का भूगोल (Indian Geography), ये एक ऐसा चैप्टर है जिससे सम्बंधित कई प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते रहे हैं। तो आप चाहे किसी भी सब्जेक्ट के स्टूडेंट क्यों न हो आपको भारत का भूगोल का सामान्य ज्ञान की बेसिक जानकारी जरूर होनी चाहिये।
इसलिए आज मैं आपको भारत का भूगोल चैप्टर के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाला हूँ। इस लेख में आप भारत की स्थिति आकार और विस्तार, भारत के भौगोलिक स्वरूप व इसकी भौगोलिक विविधताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
तो आईये भारत का भूगोल सामान्य ज्ञान एवं भारत की स्थिति आकार और विस्तार के बारे में विस्तार से जाने और अपने ज्ञान में वृद्धि करे।
भारत का भूगोल का सामान्य ज्ञान (Indian Geography in Hindi):
1- अवस्थिति एवं विस्तार (भारत का अक्षांश और देशांतर विस्तार):
ग्लोब के हिसाब से भारत की स्थिति उत्तरी पूर्वी गोलार्ध में है और यह एक दक्षिणी एशियाई देश है। इसका भौगोलिक विस्तार 8° 4’ से लेकर 37° 6’ उत्तरी अक्षांश और 68° 7’ पूर्वी देशांतर से 97° 25’ पूर्वी देशांतर तक है।
भारत की पूर्व से पश्चिम तक की लम्बाई 2933 किलोमीटर व उत्तर से दक्षिण तक की लम्बाई 3214 किलोमीटर है।
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भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 3,287,263 किलोमीटर है और क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवा बड़ा देश है जो कि पूरे विश्व का 4% भूभाग रखता है। देखने में भारत का आकार चतुष्कोणीय है।
यह दक्षिणी एशिया का सबसे बड़ा देश है। इसका दक्षिणी हिस्सा तीन और से समुद्र से घिरा हुआ है जिसे प्रायद्वीपीय भारत भी कहा जाता है।
कर्क रेखा (23° 30’ उत्तरी अक्षांश) भारत के लगभग मध्य से गुजरती है जो कि भारत में आठ राज्यों में से होकर गुजरती है जिनमे -गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा एवं मिजोरम शामिल है।
प्रायद्वीपीय भारत की पूर्वी सीमा बंगाल की खाड़ी, पश्चिमी सीमा अरब सागर और दक्षिणी सीमा हिन्द महासागर से मिलती है।
भारत की तटीय सीमा की लम्बाई: भारत की मुख्य भूमि की तटीय सीमा की कुल लम्बाई 6100 किलोमीटर है एवं इसकी स्थलीय सीमा की लम्बाई 15,200 किलोमीटर है
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2- भारत के भौतिक प्रदेश:
भारत एक विशाल देश है जो कि भौगोलिक रूप से कई विविधताएँ रखता है। इसके समस्त भूभाग में विश्व की लगभग सभी प्राकृतिक भौगोलिक दशाए देखने को मिलती है जिसमे पर्वत, पठार, मैदान, रेगिस्तान, हिम नदिया, द्वीपीय क्षेत्र आदि कई भौगोलिक स्वरूप है जिनका वर्णन पोस्ट में आगे दिया गया है।
तो आईये अब हम इन भौतिक प्रदेशो के बारे में विस्तार से जानते है।
(अ.) पर्वतीय प्रदेश:
भारत का उत्तरी और पूर्वी हिस्सा विशाल पर्वतीय मेखलाओं से घिरा हुआ है जो कि हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र भी कहलाता है जो कि पूरे भारत का 10.6% हिस्सा है।
यह एक नविन मोड़दार पर्वतीय प्रदेश है जिसका निर्माण टर्शरी काल में भारतीय प्लेट के युरेशियाई प्लेट के टकराने से हुआ था।
यह विशाल पर्वत क्षेत्र भारत में बहने वाली कई नित्यवाही नदियों का उद्गम स्थल भी है जिनमे गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र आदि प्रमुख नदिया शामिल है।
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इस हिमालयी पर्वतीय प्रदेश को इसकी भौगोलिक दशाओं के कारण विभिन्न उपभागों में बांटा गया है जैसे महान हिमालय, उप हिमालय और ट्रांस हिमालय आदि।
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महान हिमालय:
महान हिमालय को वृहद हिमालय या ग्रेट हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय का उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र है जिसमे दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटियाँ मौजूद है जिनकी ऊंचाई लगभग 6000 मीटर या उससे ज्यादा ही है जिनमे माउंट एवेरस्ट और कंचनजंगा पर्वत चोटिया प्रमुख है। यह क्षेत्र बड़े बड़े ग्लेशियर का निर्माण भी करता है।
लघु हिमालय:
यह मध्यम ऊंचाई वाली पर्वत श्रेणियों का क्षेत्र है जो कि वृहद हिमालय के दक्षिण में स्थित है। इसमें पर्वतो की औसत ऊंचाई 3700 मीटर से 4500 मीटर तक है और इसकी औसत चौड़ाई 50 किलोमीटर है। यहाँ पर कई प्रकार की पर्वतीय वनस्पति पायी जाती है।
यह पर्वतीय क्षेत्र कई पर्वतीय पर्यटन केन्द्रो का स्थान भी है जिनमे शिमला, डलहौजी, नैनीताल, मसूरी, रानीखेत और दार्जिलिंग प्रमुख है।
शिवालिक हिमालय:
यह हिमालय की सबसे बाहरी श्रेणी है। यह लघु हिमालय के बाद निम्न ऊंचाई वाला पर्वतीय क्षेत्र है। इसमें पर्वतो की ऊंचाई 900 मीटर से लेकर 1500 मीटर तक है। इसमें अवसादी चट्टानों का जमाव पाया जाता है।
इस पर्वतीय क्षेत्र की चौड़ाई पश्चिम में अधिक और पूर्व में कम पायी जाती है। यह पर्वत श्रेणी कई जगहों पर विखंडित है जिसके कारण इसकी निरंतरता दिखाई नहीं देती है।
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(ब.) मध्य भारत का मैदान:
मध्य भारत का यह मैदानी क्षेत्र पहले बहुत ही उबड़ खाबड़ क्षेत्र हुआ करता था परन्तु कालांतर में हिमालय से निकलने वाली नित्यवाही नदियों (गंगा, यमुना व उनकी सहायक नदिया) के द्वारा अवसाद जमा करने से यह क्षेत्र एक विशाल मैदान में तब्दील हो गया है। इसके जलोढ़ निक्षेप की मोटाई 2000 मीटर से भी ज्यादा है।
यह विशाल मैदान कृषि कार्यो हेतु बेहद उपजाऊ भाग है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर है। इस विशाल मैदानी क्षेत्र को 4 उपभागों में बाँटा गया है जिनमे निम्न उपभाग है – गंगा का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान, राजस्थान का मैदान, पंजाब का मैदान।
पंजाब का मैदान:
सिंधु नदी की सहायक नदियों रावी, चिनाब, व्यास, झेलम और सतलुज नदियों के जलोढ़ निक्षेपण के कारण विकसित हुआ है। यह सतलुज का मैदान भी कहलाता है इसका कुछ भाग पाकिस्तान तक भी विस्तारित है।
गंगा का मैदान:
यह एक विशाल मैदानी क्षेत्र है जिसे गंगा और उसकी सहायक नदीयों द्वारा बनाया गया है। यह काफी मंद ढाल वाला क्षेत्र है जिसका ढाल दक्षिण पूर्व की और है।
इस क्षेत्र में नदियों द्वारा बनायीं गयी स्थलाकृतियाँ पायी जाती है जैसे- गोखुर झीले, गुम्फित नदिया, रोधिका, विसर्प आदि। यह पर कई नए पुराने जलोढ़ मैदान (खादर और बांगर) पाए जाते है।
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ब्रह्मपुत्र का मैदान:
यह ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा निर्मित विशाल मैदानी क्षेत्र है। यह मध्य भारत में विशाल मैदान का एक ऐसा क्षेत्र है जिसका ढाल पश्चिम से पूर्व की और है। इसका विस्तार 100 किलोमीटर चौड़ाई के साथ लगभग 600 किलोमीटर लम्बाई तक है।
(स.) दक्षिण का पठार:
प्रायद्वीपीय भारत का ये त्रिभुजाकार हिस्सा जो कि मजबूत लावा से बना हुआ है, इसे प्राद्वीपीय पठार भी कहा जाता है। विंध्याचल व सतपुड़ा पहाड़ियों द्वारा शेष उत्तर भारत से प्राद्वीपीय भारत को अलग किया गया है।
ये त्रिभुजाकार पठार भारत के 7 राज्यों में विस्तारित है। इसकी उत्त्पत्ति ज्वालामुखी से हुई है इसलिए इसमें काली मिटटी बहुतायत में पायी जाती है। इसे दो भागो में विभक्त किया गया है- मध्य उच्च भूमि, दक्कन का पठार।
मध्य उच्च भूमि:
यह नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित पठारी भूभाग है जो कि अरावली और विंध्याचल पर्वत श्रंखला द्वारा घिरी हुई है। इस इलाके से चम्बल, बेतवा, सिंध और केन आदि नदिया प्रवाहित होती है। इस पठार का पूर्वी हिस्सा बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है।
दक्कन का पठार:
इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की और है। इस वजह से यहाँ की ज्यादातर नदियों (नर्मदा और ताप्ती के अलावा) का बहाव पूर्व दिशा की और है जो कि अंत में बंगाल की खाड़ी में अपना जल विसर्जित करती है।
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(द.) थार का मरुस्थल:
पश्चिमी भारत का ये विशाल रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान के लगभग आधे हिस्से तक विस्तृत है। यह अरावली पर्वत माला के पश्चिम में स्थित है। यह भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा भी बनती है।
इसका विस्तार राजस्थान के साथ गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रान्त तक है। इस क्षेत्र में विशाल मात्रा में रेट के टीले पाए जाते है।
यहाँ पर उष्ण कटिबंधीय वनस्पति पायी जाती है जिनमे कटीली झाडिया, छोटे पत्तेदार व काटे वाली वनस्पति बहुतायत में मिलती है। यहाँ पर वर्षा बहुत कम मात्रा में होती है इस वजह से यहाँ पर नदियों की कमी है।
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हालाँकि कई जगह खारे पानी की झीले भी पायी जाती है। इस इलाके में खेती न के बराबर होती है।
(य.) तटीय क्षेत्र :
प्रायद्वीपीय भारत का ढाल पश्चिम से पूर्व की और है और इसका पश्चिमी तट काफी कटा फटा है परन्तु पूर्वी तट सपाट है जिस वजह से गंगा, कावेरी, कृष्णा गोदावरी, महानदी आदि नदिया समुद्र में मिलते समय डेल्टा का निर्माण करती है।
पूरे समुद्र तटीय भाग को कई उप नामो से पुकारा जाता है जैसे पूर्वी तट को उत्तरी सरकार तट जिसका विस्तार पश्चिमी बंगाल से कृष्णा नदी के डेल्टा तक है और इसी डेल्टा से तमिलनाडु में कन्याकुमारी तक कोरोमंडल तट के नाम से जाना जाता है।
इसके बाद कन्याकुमारी से गोवा तक का तटीय क्षेत्र मालाबार तट कहलाता है। गोवा से मुंबई तक का तटीय क्षेत्र कोंकण तट कहलाता है। इसके बाद मुंबई से गुजरात तक तटीय क्षेत्र काठियावाड़ तट कहलाता है।
3- जलवायु:
भारत एक भौगोलिक विविधताओं वाला देश है। इसलिए इसकी जलवायु में भी विविधता पायी जाती है। वैसे भारत उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है
परन्तु यहाँ की भोगोलोक विभिन्नताओं के कारण यहाँ पर अलग अलग स्थनो पर तापान्तर देखने को मिलता है जैसे- उत्तर भारत के पर्वतीय प्रदेश में कई स्थानों पर तापमान शुन्य से भी कम रहता है तो पश्चिमी रेगिस्तान में दिन का तापमान 50° से भी पार हो जाता है।
कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार भारत में 6 जलवायु प्रदेश परिलक्षित होते है। यहाँ की जलवायु में 4 ऋतुऐं पायी जाती: जाड़ा, गर्मी, बरसात और शरदकाल। भारत के समुद्रतटीय इलाको वर्षभर तापमान में समानता देखने को मिलती है।
4- जल संसाधन:
भारत के जलसंसाधनों में भी विभिन्नता देखने को मिलती है। कुछ स्थानों पर जल बहुतायत में मिलता है तो कुछ स्थान जल की विकट परिस्थितियां है।
भारत के जलसंसाधनों को मुख्यतः दो भागो में दो भागों में बाटा गया है: धरातलीय जलसंसाधन और भूमिगत जलसंसाधन।
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(i) धरातलीय जलसंसाधन:
धरातलीय जलसंसाधन के मुख्य स्रोत नदियाँ, झीले, तलैया और तालाब है। भारत में छोटी-बड़ी मिलाकर कुल 10360 नदिया है और इन सभी नदी बेसिनों का औसत वार्षिक प्रवाह 1869 घन किमी माना गया है।
हालाँकि इन सभी नदी बेसिनों का जल प्रवाह यहाँ पर होने वाली वार्षिक वर्षा और इनके जलग्रहण क्षेत्र पर निर्भर करता है।
(ii) भौम/भूमिगत जल संसाधन:
भौम जल यानि भूमिगत जल जो हमें भूमि की गहराई से प्राप्त होता है जिसके अंतर्गत कुंवे, बावड़िया, नलकूप आदि आते है।
भारत में भूमिगत जल संसाधनो में भी विभिन्नता पायी जाती है जैसे: गंगा, ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में भौम जल की मात्रा अन्य नदी बेसिनो की अपेक्षा 46 % अधिक है।
भारत के कुछ राज्य भूमिगत जल का ज्यादा उपयोग करते है जिनमे- राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु प्रमुख है। इसके साथ ही केरल, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्यों में भूमिगत जल का सबसे कम उपयोग किया जाता है।
5- भारत की मिट्टिया:
भारत एक विशाल देश होने के कारण यहाँ पर मिट्टियो में भी विभिन्नता देखने को मिलती है। इसलिए यहाँ कई प्रकार की मिट्टिया पायी जाती है। जैसे:- जलोढ़ मिटटी, काली मिटटी, लाल मिटटी, लेटराइट मिटटी, रेतीली मिटटी(रेगिस्तानी मिटटी) प्रमुख है।
जलोढ़, काली, लाल और पिली मिट्टियो में पोटाश व चूने की मात्रा ज्यादा पायी जाती है किन्तु इनमे नाइट्रोजन, ह्यूमस, फास्पोरस एसिड की मात्रा काम होती है। लेटराइट मिटटी में ह्यूमस की मात्रा ज्यादा होती है जबकि इसमें अन्य तत्वों की कमी होती है।
(i)जलोढ़ मिटटी:
जलोढ़ मिटटी को दोमट मिटटी भी कहा जाता है। यह मिटटी भारत के समस्त उत्तरी मैदानी क्षेत्र में पायी जाती है। यह नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी मिटटी है।
इस मिटटी के कण बहुत ही महीन(बारीक़) होते है। यह मिटटी उत्तरी राजस्थान, पंजाब, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार और असम में पायी जाती है।
(ii) काली मिटटी:
इसे रेगड़ मिटटी भी कहा जाता है। इसका निर्माण लावा से हुआ है। यह भी बहुत उपजाऊ मिटटी होती है जिसे कपास की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह मिटटी गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तरी कर्नाटक में पायी जाती है।
(iv) लाल मिटटी:
यह मोटे कण वाली लाल रंग की मिटटी है। इसमें लोहांश और चट्टानों के छोटे बड़े कण पाए जाते है। यह मिटटी भारत के पठारी क्षेत्र में बहुतायत में पायी जाती है।
(v) लेटेराइट मिटटी:
यह भी लाल रंग की मिटटी होती है जो कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है। यह कम उपजाऊ होती है। यह दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिणी पूर्व, इसके लावा असम और पश्चिमी बंगाल तक देखने को मिलती है।
(vi) रेगिस्तानी मिटटी:
यह मोटे कण वाली रेतीली मिटटी है जो कि राजस्थान के थार प्रदेश, दक्षिणी पंजाब में मिलती है। इसमें मुख्यतः मोटे अनाज की खेती की जाती है।
6- भारत की वनस्पति:
भारत में विभ्भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों जे कारण वनस्पति में भी विभिन्नता पदेखने को मिलती है। भारत को आठ वनस्पति क्षेत्रो में बाटा गया है जिनमे है- पश्चिमी हिमाचल, पूर्वी हिमाचल, असम, सिंधु नदी का मैदानी क्षेत्र, डेक्कन, गंगा का मैदानी क्षेत्र, मालाबार और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।
इनमे से पर्वतीय इलाको में देवदार, स्प्रूस, पाइन, चीड़, कोनिफर और सिल्वर फर आदि चौड़े पत्ते वाले विशाल पेड़ दिखाई देते है, असम और पचिमी बंगाल के क्षेत्रों में सदाबहार वन पाए जाते है, तो कुछ तटीय इलाको (डेल्टाई क्षेत्र) में मेंग्रोव वनस्पति पायी जाती है।
इसके साथ ही मध्य भारत के मैदानी क्षेत्र में उपोष्णकटिबंधीय( वर्षकालिक वन पाए जाते है जो कि पतझड़ वन भी कहलाते है। पश्चिमी प्रदेश: राजस्थान व गुजरात में उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते है। यह कई वनस्पति में पत्तिया छोटी छोटी होती है।
7- भारत की कृषि:
भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसलिए यहाँ पर कृषि आधारित व्यसाय ज्यादा होते है। हालाँकि भारत में कृषि की मानसून पर निर्भरता ज्यादा है इसलिए यहाँ पर मानसून के अनुसार ही कृषि फैसले बोई जाती है।
कुछ क्षेत्रो में सिंचाई की अच्छी सुविधा होने के कारण वहा सालभर फैसले बोई जाती है।
हरित क्रांति के दौर से ही भारत में विभिन्न किस्म की ज्यादा उपजाऊ फैसले बोई जाने लगी है जिसके कारण भारत आज के समय में खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो चुका है।
भारत में बोई जाने वाली फसलों में मुख्यतः चावल, गेहूँ, ज्वार, कपास, बाजरा, गन्ना, दलहन व तिलहन फसले, मूंगफली व चाय है।
8- भारत के खनिज संसाधन:
भारत में प्रचुर मात्रा में खनिज भंडार मौजूद है। इस कारण यह देश खनिज संसाधनों के मामले में आत्मनिर्भर है। यहाँ खनिजों के अंतर्गत लोहा, ताम्बा, मैगनीज, सीसा, जस्ता, सोना, चांदी, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, कोयला प्रचुर मात्रा में मिलता है।
इसके साथ ही यहाँ पर उत्तम प्रकार का इमारती पत्थर( संगमरमर, कोटा स्टोन) भी खदानों से प्राप्त होता है।
भारत के कई राज्य खनिज संसाधनों की दृष्टि से काफी समृद्ध है जैसे:- उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़। लौह अयस्क और अभ्रक के उत्पादन में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है।
भारत में 50 खनिज सम्पदा क्षेत्र है और जिनके लगभग 400 स्थानों से खनिज निकाले जाते है।
अंत में:
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