इस आर्टिकल में आज आप जानेंगे कि ज्वार भाटा क्या है, ज्वार भाटा कैसे उत्पन्न होता हैं, ज्वार के प्रकार, ज्वार भाटा की विशेषताएं और ज्वार भाटा के लाभ क्या हैं? अतः आप ये पोस्ट अंत तक जरूर पढ़े:
Contents
ज्वार भाटा क्या है, ये कैसे उत्पन्न होता हैं?
सूर्य एवं चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण सागरीय जल के नियमित रूप से ऊपर उठने एवं गिरने की प्रक्रिया को ज्वार-भाटा कहा जाता हैं।
चन्द्रमा सूर्य से आकार में छोटा होने के बावजूद अपेक्षाकृत अधिक नजदीक होने के कारण सूर्य की तुलना में अधिक आकर्षण बल पृथ्वी पर डालता हैं।
पृथ्वी की सतह केंद्र की अपेक्षा चन्द्रमा से लगभग 6400 किमी नजदीक हैं। अतः पृथ्वी के उस भाग में, जो चन्द्रमा के सामने स्थित हैं, आकर्षण का प्रभाव अधिकतम होता हैं एवं उसके पीछे स्थित भाग पर यह प्रभाव न्यूनतम होता हैं।
फलस्वरूप चन्द्रमा के सामने स्थित पृथ्वी का जल ऊपर खिंच जाता हैं, जिसके फलस्वरूप वहां ज्वार आता हैं। इस स्थान के ठीक पीछे स्थित भाग में भी अपकेंद्रीय बल के कारण ठीक उसी समय अप्रत्यक्ष ज्वार आता हैं।
“ज्वार के समय पृथ्वी के अन्य भागों का जल खींचकर चले आने से दोनों ज्वार वाले स्थानों के बीच के भागों में समुद्र तल सामान्य तल से नीचे चला जाता हैं, जिसे ‘भाटा’ कहते हैं। “
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ज्वार के प्रकार:
1 – वृहत ज्वर/दीर्घ ज्वार (Spring Tide) किसे कहते हैं?
प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा पृथ्वी की घूर्णन गति (rotation) के कारण आता हैं। जब सूर्य एवं चन्द्रमा एक सीध में होते हैं तो दोनों की आकर्षण शक्ति सम्मिलित रूप से कार्य करती हैं जिसके कारण ज्वार की ऊंचाई अधिक होती हैं। इसे वृहत ज्वर या दीर्घ ज्वार (Spring Tide) कहा जाता हैं।
यह ज्वार साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% अधिक ऊँचा होता हैं। इस समय भाटा की ऊंचाई सबसे कम होती हैं। यह स्थिति प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को होती हैं।

2 – लघु ज्वार (Neap Tipde) किसे कहते हैं?
प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी एवं अष्टमी को सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा समकोणिक स्थिति में होते हैं।
फलस्वरूप सूर्य एवं चन्द्रमा के ज्वारोत्पादक बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं, जिसके कारण सामान्य ज्वार से भी नीचा ज्वारा आता हैँ। इसे लघु ज्वार (Neap Tipde) कहा जाता हैं।
यह समान्य ज्वार से 20% नीचा होता हैं। इस समय भाटा की निचाई सामान्य भाटा से कम होती हैं। इसके फलस्वरूप ज्वार एवं भाटे की उंचाई का अंतर् काफी कम रहता हैं।
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ज्वार भाटा की विशेषताएं:
प्रत्येक स्थान पर सामान्य तौर पर दिन में दो बार ज्वार आता हैं, एक बार चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण एवं दूसरी बार अपकेंद्रीय शक्ति (Centrifugal Force) के कारण।
चूँकि पृथ्वी 24 घंटे में एक चक्कर पूरा कर लेती हैं, अतः प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे बाद ज्वार आना चाहिए, परन्तु प्रतिदिन ज्वार ,लगभग 26 मिनट देरी से आता हैं।
इसका कारण चन्द्रमा को अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करना हैं। ज्वार के 6 घंटे एवं 13 मिनट बाद भाटा आता हैं।
चन्द्रमा की ज्वारोत्पादक शक्ति सूर्य की तुलना में 2.17 गुना हैं, अर्थात चन्द्रमा सूर्य की ज्वारोत्पादक शक्ति में 11:5 का अनुपात होता हैं।
ज्वार भाटा के लाभ क्या हैं?
- नाविक ज्वार के साथ मछली पकड़ने के लिए खुले समुद्र में जाते हैं एवं भाटा के साथ सुरक्षित लौटते हैं।
- ज्वार-भाटा में लहरें समुद्री संसाधन को अपने साथ बहाकर अपने साथ लाकर तट पर छोड़ देती हैं एवं तट पर स्थित कचरे को बहाकर ले जाती हैं।
- नदमुखों पर स्थित बन्दरगाहों तक जहाज ज्वार के आने पर अंदर आते हैं एवं दूसरे ज्वारके साथ वापस जाते हैं। उदाहरणस्वरूप कोलकाता का बंदरगाह।
- खम्भात की खाड़ी तथा कच्छ की खाड़ी में ज्वारीय बलों से विद्युत उत्पादन की परियोजनाएं लगाई गई हैं।
Conclusion:
इस पोस्ट में आपने जाना कि ज्वार भाटा क्या है ज्वारभाटा कैसे उत्पन्न होता हैं और ज्वार भाटा के लाभ क्या हैं? अगर आपको ये जानकारी पसंद आयी हो तो इसे शेयर जरूर करें।
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