ग्रीन हाउस इफेक्ट क्या है या हरित गृह प्रभाव किसे कहते है और क्यों दुनियाभर के वैज्ञानिक इसको लेकर बहुत ज्यादा चिंतित है? आज इस लेख में हम इसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। अतः आप ये लेख अंत तक जरूर पढ़े क्यूंकि इसमें आप जानेंगे कि ग्रीन हाउस इफेक्ट क्या है एवं इसके कारण और समाधान क्या है (What is Greenhouse Effect in Hindi)
ग्रीन हाउस इफेक्ट क्या है (What is Greenhouse Effect):
Green House को हरित गृह भी कहा जाता है। हरित गृह काँच का बना हुआ एक ऐसा घर होता है जो कि अपने अंदर उचित तापमान को बनाये रखता है जिससे उसके अंदर मौजूद पौधों की वृद्धि और सुरक्षा होती है।
इन्हें ऐसे प्रदेशों में बनाया जाता है जहां का तापमान बहुत ही कम होता है और इस तापमान की कमी के कारण वहां पर फल और सब्जियों का उत्पादन नहीं हो पाता है क्यूंकि पौधों को उचित मात्रा में सूर्य की गर्मी नहीं मिल पाती है।
अतः वहां सब्जियों के उत्पादन के लिए खेतों या खाली जगहों में इस प्रकार के कांच के घर बनाये जाते है। इन Green House की यह विशेषता होती है कि सूर्य का प्रकाश इन कांच की दीवारों से अंदर जाकर मृदा को ऊष्मा प्रदान करता है, जिससे पोधो में वृद्धि होती है।
ये ऊष्मा मृदा से वापिस अवरक्त तरंगो के रूप में विकिरित होती है लेकिन काँच से नहीं निकल पाती है। इस विधि से वायुमंडल का तापमान सामान्य से 0.5 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है।
तो इसी सन्दर्भ में हम पृथ्वी को देखे तो हमारी पृथ्वी के चारो और वायुमंडल की एक मोटी परत है जो कि बिल्कुल अदृश्य है और ये पृथ्वी के लिए लिए एक green house यानि हरित गृह का ही काम करती है क्यूंकि वायुमंडल की ये परत पृथ्वी पर जीवन के लिए औसत तापमान (लगभग 16 डिग्री से.) को बनाये रखने में मदद करती है।
लेकिन दिक्कत की बात यह है कि पृथ्वी के वायुमंडल में कुछ गैसों (जैसे -CFC, CO2) की मात्रा इस सीमा तक बढ़ गयी है जिससे धरती की ऊष्मा या गर्मी बाहर नहीं निकल पा रही है और धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इससे उत्पन्न प्रभाव को ही green house effect कहते है।
सूर्य से उत्पन्न लघु तरंग विकिरण आसानी से वायुमंडल को पार कर धरती पर पहुँच जाती है, लेकिन पृथ्वी से दीर्घ तरंग के रूप में होने वाला पार्थिव विकिरण वायुमंडल के जलवाष्प और अम्ल गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। अगर यह प्रक्रिया संतुलित रूप से हो तो वायुमंडल में ताप का संतुलन कायम रहता है।
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ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण क्या है?
हरित गृह प्रभाव सूर्याभिताप के पार्थिव विकिरण के वायुमंडल द्वारा रोके जाने की क्रिया है जो सम्पूर्ण ग्लोब के तापमान को बढ़ा रही है। इसके लिए प्रमुख रूप रूप से CO2 (कार्बनडाईऑक्साइड) गैस है जिन्हे हरित गृह गैसें कहा जाता है। इसके अतिरिक्त हरित गृह गैसों के लिए मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि भी उत्तरदायी है।
CO2 (कार्बनडाईऑक्साइड):
ऑटोमोबाइल, रेलवे, एयरक्राफ्ट से निकले पेट्रोल और डीज़ल के कारण बहुत अधिक मात्रा में कार्बनडाईऑक्साइड गैस निकलती है। इसी प्रकार उद्योगों, यातायात के साधनों में दहन होने वाले ईंधन से तथा घरेलु उपयोग के दौरान लकड़ियों के दहन से, कोयला जलाने से वायुमंडल में कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
मीथेन (CH4)
इस गैस की प्राप्ति आद्र भूमि, बाढ़ग्रस्त चावल के खेतो से होती है। यह मीथेनोजिन बैक्टीरिया द्वारा कचरे के विघटन से भी प्राप्त होती है।
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFCS):
यह यौगिक प्रशीतकों, रेफ्रिजरेटरो ऐरोसोल्स से प्राप्त होता है। यह कार्बन साथ क्लोरीन और फ़्लोरिन जैसे यौगिक होते है। यह यौगिक अधिक स्थायी अविषेले होते है। यह वायुमण्डल में रेफ्रिजरेटरो, एयरकंडीशनर, स्प्रे और औद्योगिक पदार्थो से निष्कासित होते है।
नाइट्रोजन ऑक्साइड:
नाइट्रोजन ऑक्साइड का वायुमंडल में प्रमुख स्त्रोत बिजली चमकना है। जीवाष्मीय ईंधन के जलने और कृषिगत क्रियाकलाप भी नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्पादित करते है।
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ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम:
- कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में वृद्धि के कारण पौधो में प्रकास संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।
- हरित गृह गैसों की सांद्रता में वृद्धि होने से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती है जिसे global warming कहते है।
- तापमान में वृद्धि के फलस्वरूप अण्टार्कटिका, ग्रीनलैंड और आर्कटिक क्षेत्रों की हिमचादर पिघल जाएगी। सागर तल में 2050 तक 1 मीटर की वृद्धि हो जाएगी।
- बाढ़ो की तीव्रता बढ़ जाएगी।
- तापमान में वृद्धि के फलस्वरूप वर्षा तथा मृदा में नमी की मात्रा में कमी होगी, जिससे कृषि प्रभावित होगी।
- वन क्षेत्र में कमी आएगी।
- महासागरीय जल मेंCO2 का अवशोषण तथा विघटन सामान्य स्तर से अधिक होगा तो अम्लता बढ़ जाएगी, जिससे सागरीय पारिस्थितिकीय तन्त्र की उत्पादकता घटेगी।
- वैज्ञानिको ने नवीन हरित गृह गैसों की खोज ही है जिसे ट्रायफ्लोरो मिथाइल (F3) कहते है। यह CO2 की तुलना में 100 वर्षों की समयावधि तक अवरक्त किरणों का अवशोषण करने की लगभग 20000 गुना अधिक क्षमता रखती है।
ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करने के उपाय:
- मेथेनॉल या एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए उपयुक्त तकनिकी प्रयोग में ली जानी चाहिए। यह ईंधंन अकेले पेट्रोल की तुलना में कम प्रदूषण फैलाता है।
- जेट्रोफा (रतनजोत) पौधे से तेल प्राप्त होता है, जो पेट्रोल का विकल्प हो सकता है।
- अधिक मात्रा में वृक्ष लगाए।
- सीसा रहित पेट्रोल का प्रयोग इंजनों में किया जाना चाहिए।
- क्लोरो – फ्लोरो कॉर्बन गैसों के बजाय अहरीत गैसे उपयोग में ली जाएं।
- वाहनों से निकलने वाले धुएँ भी ग्रीन हाउस गेसो के उत्सर्जन में सहायक होतें है। इसलिए वाहनों से निकले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यूरो मानक अपनाए गए है। यूरो I, यूरो II, यूरो III प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए मानक है जो मोटरगाड़ियों में उत्सर्जन की सीमा तय करते है।
Conclusion:
तो दोस्तों इस पोस्ट में आपने जाना कि ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है (What is Greenhouse Effect) और इसके कारण और समाधान क्या है? वास्तव में Green House Effect कितना बड़ा ग्लोबल खतरा बनता जा रहा है और इसलिए इसको रोकने के लिए हमे क्या करना चाहिए यह बात हम सब जान चुके है पर फिर भी हम इसको ज्यादा गम्भीरता से नहीं ले रहे है।
दोस्तों, ये एक ऐसी ग्लोबल समस्या है जिसे हम सब मिलकर ही ख़त्म कर सकते है। इसके लिए हम सबको मिलकर कहते अभी से ही प्रयास शुरू करने होंगे ताकि इस वैश्विक खतरे को समय रहते काबू किया जा सके।
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