दोस्तो! जब भी किस्से कहानियों की बात आती है तो उनमें कही न कहीं लोमड़ी का जिक्र आ ही जाता है और वैसे आपको तो पता ही हैं कि लोमड़ी कितनी होशियार और चालाक होती हैं।
इसलिए आज कहानियों के इस पिटारे में हम आपके लिए लेकर आये है Chalak Lomdi Ki Kahani, चालाक लोमड़ी की 5 best कहानियाँ जो आपको बहुत पसंद आयेगी और साथ ही आपको इनसे कुछ न कुछ सीखने को भी जरूर मिलेगा।
तो आईये मजे से पढ़ते है Chalak Lomdi Ki Kahani in Hindi
Chalak Lomdi Ki Kahani, चालाक लोमड़ी की 5 best कहानियाँ:
1. लालची लोमड़ी और किसान
एक समय की बात है जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। एक बार उसे जोरो की भूख लगी और खाने की तलाश में वो इधर उधर भटक रही थी।
चलते चलते वो एक गांव के निकट जा पहुंची। वहां उसने एक बड़ा सा अंगूरों का खेत देखा जिसके चारों तरफ ऊँची ऊँची कँटीली बाड़ लगी हुई थी और जिसमें कही से भी अंदर जाने का रास्ता नहीं था।
लोमड़ी ने देखा कि उस खेत के अंदर अंगूर के अलावा कई सारे फल भी लगे हुए थे और ज्यादातर फल पके हुए थे।
ये देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आने लगा। और अब वो सोचने लगी कि काश मैं इस खेत में अंदर पहुँच जाऊ तो फिर मजा ही आ जाये।
यहाँ इतने सारे फल है कि मैं कई दिनों तक आराम से बैठकर ताजे और मीठे फल खाती रहु तब भी शायद ये मुझसे ख़त्म न हो पाएंगे।
लेकिन ये मज़ा तो तब है जब मैं इस खेत के अंदर जा सकू। लेकिन अब मैं इसके अंदर कैसे जाऊ?
मन ही मन ऐसा सोचती हुई लोमड़ी उस खेत की बाढ़ को ध्यान से देखने लगी कि शायद कहीं कोई रास्ता मिल जाये अंदर जाने का।
उसने देखा कि खेत की बाढ़ में एक संकरी सी खुली जगह है जहां से वो अंदर जा सकती है लेकिन वो इतनी संकरी है कि वो उसमे से अंदर नहीं जा सकेगी।
अचानक उसे एक उपाय सुझा कि यदि वो कुछ दिन और भूखी रह ले तो इतनी दुबली पतली हो जाएगी कि वो आराम से इसके अंदर जा सकेगी। फिर अंदर जाने के बाद तो खा खाके फिर से मोटी ताजी हो ही जाएगी।
उसके बाद लोमड़ी भूखी रहने लगी और कुछ ही दिनों में भूख के मारे वो सूख कर काँटे जैसी हो गयी।
उसके बाद लोमड़ी को आराम से अंदर जाने का मौका मिल गया। अंदर जाने के बाद उसने खूब मीठे मीठे फल खाये और इस तरह लोमड़ी के तो अब मजे ही हो गए।
हर रोज़ लोमड़ी इसी तरह खूब पेट पूजा करती। अब उसे बाहर आने की कोई चिंता भी नहीं रही। धीरे धीरे लोमड़ी पहले से भी ज्यादा मोटी ताज़ी हो गयी।
कुछ दिनों बाद एक दिन अचानक खेत का मालिक अपने खेत को देखने आया। उसने देखा कि उसका खेत तो अब पहले जैसा बिल्कुल नहीं रहा, कोई है जो वहां के फल चुरा रहा है।
खेत का मालिक अब उस चोर को सबक सिखाने के लिए एक मोटा सा डंडा लेकर दिन-रात वहीं रखवाली करने लगा।
जब ये बात लोमड़ी को पता चली तो उसने सोचा कि अब चुपचाप यहाँ से खिसक लेने में ही भलाई है नहीं तो अब खूब मार पड़ेगी।
ये सोचकर लोमड़ी उसी जगह पहुंची जहां से वो अंदर आयी थी लेकिन ये क्या अब तो वो उस रास्ते से बाहर नहीं जा सकती क्यूंकि अब उसका पेट पहले से काफी मोटा हो चुका था।
अब तो लोमड़ी की चिंता और बड़ गयी क्यूँकि अब वो बाहर नहीं निकल पा रही थी और उधर खेत का मालिक उसको सबक सिखाने के लिए तैयार बैठा था।
लोमड़ी के पास अब बस एक ही उपाय था कि अब वो पहले की तरह कुछ दिन भूखी रहे ताकि इस मुसीबत से आज़ाद हो सके।
इसलिए वो कुछ दिन के लिए घने पेड़ों की आड़ में जाकर छुप गयी। और पहले की तरह भूखी प्यासी रहने के कारण अब वो फिर से दुबली पतली हो गयी। फिर एक दिन मौका पाकर चुपचाप वहां से भाग निकली।
सबक – जान बची तो लाखों पाये।
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2. लोमड़ी और कौआ
एक बार एक कौवे को कहीं से रोटी का टुकड़ा मिल गया जिसे लेकर वो एक सूखे पेड़ पर बैठकर खाने लगा।
तभी एक लोमड़ी उधर से गुजर रही थी। उसने देखा कि कौवे के मुँह में एक बड़ा सा रोटी का टुकड़ा है। ये देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आने लगा। उसने वो रोटी का टुकड़ा कौवे से छीनने की तरकीब सोची।
पास जाकर लोमड़ी बड़े ही विनम्र भाव से कौवे से बोली “कौवे भैया, मैंने सुना है कि आप बहुत मीठा गाना गाते हो। क्या आप मुझे भी अपनी सुरीली आवाज में कोई गाना सुना सकते हो?”
लोमड़ी की ये बात सुनकर कौवा बहुत खुश हुआ और अब वो उस लोमड़ी को अपनी आवाज में गाना सुनाने को राज़ी हो गया।
लेकिन जैसे ही कौवे ने अपना मुँह खोला रोटी उसके मुँह से छूटकर नीचे जा गिरी। लोमड़ी झट से वो रोटी का टुकड़ा मुँह में दबाकर चलती बनी और कौवा लोमड़ी का मुँह देखता रह गया।
सबक : झूठे लोगों पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए।
3. लोमड़ी और खट्टे अंगूर
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। एक दिन उसे जोरो की भूख लगी और खाने की तलाश में वो इधर उधर घूम रही थी। घुमते घुमते वो एक बगीचे में जा पहुंची। बगीचे में खूब सारे अंगूर लगे हुए थे।
यह देखकर लोमड़ी बहुत खुश हुई और अंगूर पाने के लिए उछलकूद करने लगी। लेकिन अंगूर लोमड़ी की पहुँच से काफी ऊँचे थे।
इसलिए अब लोमड़ी पहले से ज्यादा ऊँची छलांग लगाने लगी। वह और ऊँची कूदी, और ऊँची कूदी लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। अंगूर अब ही उसकी पहुँच से काफी दूर थे।
लगातार उछलकूद करने से लोमड़ी थक गयी और आखिर में अंगूर खाने का विचार त्याग कर यह कहती हुई वहां से चली गयी कि “ये अंगूर खट्टे है।”
सबक : अपनी विफलता पर किसी को दोष मत दो।
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4. लोमड़ी और शेर
किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वो बहुत चालाक थी और झूठ बोल बोलकर जंगल में सबको बताती फिरती कि वो ईश्वर की भेजी हुई एक दूत है। इसलिए सबको उससे डरना चाहिए।
एक दिन ये बात शेर को पता चली तो वो लोमड़ी को ढूंढ़ता हुआ लोमड़ी के सामने जा पहूंचा। शेर को सामने देखकर अब लोमड़ी डर के मारे कांपने लगी फिर भी अपनी जान बचाने के लिए वो हिम्मत से काम लेती हैं।
वो चालाकी दिखाते हुए शेर से कहती हैं – “देखो राजा शेर क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मैं ईश्वर की दूत हूँ, मुझे यहाँ ईश्वर ने भेजा हैं इसलिए तुम्हें मुझसे डरना चाहिए।”
लोमड़ी की बात सुनकर शेर ने कहा “मैं कैसे मान लू कि तुम ईश्वर की दूत हो, कोई सबूत हो तो बताओ मुझे।”
यह सुनकर लोमड़ी थोड़ी घबराई और बात सँभालते हुए बोली ” अच्छा तुम्हें सबूत चाहिए……!! तो ठीक है आओ मेरे पीछे पीछे।
अब लोमड़ी आगे आगे चलती जा रही थी और शेर उसके पीछे पीछे। लोमड़ी जहां से भी गुजरती जा रही थी वहां के सभी जानवर डर के मारे भागने लगे, अपनी जान बचाने के लिए कोई इधर तो कोई उधर छुपने लगा।
लेकिन वास्तव में जंगल के जानवर लोमड़ी से नहीं बल्कि उसके पीछे पीछे आ रहे शेर के डर से अपनी जान बचाकर भाग रहे थे।
ये देखकर शेर भी कुछ कुछ डरने लगा लेकिन वो आगे चलता रहा। आगे चलकर जब शेर ने देखा कि अब तो बड़े बड़े जानवर भी लोमड़ी से डर कर भाग रहे है तो शेर को पक्का यकीन हो गया कि लोमड़ी सच में ईश्वर की कोई दूत हैं और अब इससे जान बचाने में ही भलाई हैं।
अब डर के मारे शेर ने लोमड़ी का पीछा करना छोड़ दिया और मौका पाकर चुपचाप वहां से खिसक लिया।
सबक – घोर विप्पति में भी हमें हिम्मत से काम लेना चाहिए।
5. लोमड़ी की चतुराई
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वो इतनी चालाक थी कि मौका मिलने पर वो शेर का शिकार भी खा जाया करती और शेर को कुछ पता भी नहीं चलता।
जब बहुत दिनों तक लगातार ऐसा होता रहा तो किसी ने शेर को बताया की उसकी गैर मौजूदगी में लोमड़ी चुपके से उसका खाना चुरा कर खा जाती है।
ये बात जानकर शेर को बहुत गुस्सा आया और अब उसने लोमड़ी को सबक सिखाने के लिए एक उपाय सोचा।
अगले दिन मौका पाकर शेर लोमड़ी की गुफा में जा बैठा और चुपचाप लोमड़ी के वापस आने का इन्तजार करने लगा।
इधर दिन ढलने पर जब लोमड़ी वापस लौटी तो उसने देखा कि उसकी गुफा के बाहर शेर के आने के निशान है लेकिन वापस जाने के नहीं है।
लोमड़ी अब समझ चुकी थी कि आज तो शेर उसकी गुफा में आ बैठा है और वो उसे खाना चाहता है। फिर भी यकीन करने के लिए वो जूठ मूठ कहती हैं – “गुफा …….!!… ओ ….प्यारी गुफा !!! कैसी हो तुम, आज का दिन कैसा बिता तुम्हारा?
लेकिन गुफा की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। क्यूंकि गुफा कभी इस तरह जवाब नहीं देती थी जो भला आज देती।
लोमड़ी फिर कहती है -“मेरी प्यारी गुफा ……..!! रोज रोज जब मैं घर वापस आती हूँ तो तू मुझसे बातें भी करती हैं लेकीन आज तुम मेरी बात का कोई जवाब भी नहीं दे रही हो, ऐसा क्यों, क्या तुम मुझसे नाराज हो?”
“देखो अगर तुम मेरी बात का कोई जवाब नहीं दोगी तो आज मैं भी अंदर नहीं आऊंगी।”
इधर शेर ने सोचा कि शायद ये गुफा हर रोज़ ऐसे ही लोमड़ी से बात करती होगी लेकिन हो सकता है कि शायद ये मेरे डर के मारे कोई जवाब नहीं दे रही हैं।
इसलिए अब उसने स्वयं ही जवाब देने की सोची, वह धीमी आवाज में बोला कि -” नहीं नहीं बहन! मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ। बस आज थोड़ी तबियत ख़राब हैं मेरी, इसलिए बस अब तुम अंदर आ जाओ”
ये आवाज सुनकर लोमड़ी अब एक दम चौंक गयी। अब उसका शक यकीन में बदल चुका था।
अब लोमड़ी शेर को अपने रास्ते से हटाना चाहती थी। उसने एक प्लान बनाया। उसने जल्दी से बहुत सारे सूखे झाड़ और लकड़िया इकट्ठी की और उनको गुफा के द्वार पर लगाकर उसमें आग लगा दी।
इस प्रकार आग की भयानक लपटों में जलकर शेर मर गया।
सबक – अपने दुश्मनों से हमेशा सतर्क रहो।
At Last :
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