प्यारे बच्चों! आज के इस लेख में आपके लिए फिर से हाजिर हैं अनौखी और ज्ञानवर्धक कहानियाँ। उम्मीद हैं आपको ये ज्ञानवर्धक कहानियाँ जरूर पसंद आयेगी। तो कहानियों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं और पढ़ते हैं ज्ञानवर्धक कहानियाँ

ज्ञानवर्धक कहानियाँ

-: सिफारिश :-

बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक अमीर आदमी रहता था। उसने अपने दोस्तों और आस-पास के सभी गांव में कह दिया कि अगर कोई अच्छा शिक्षक हैं, जो मेरे बेटे को अच्छे से पढ़ा सकता हैं तो मुझे बताए।

उसके एक मित्र ने उनके पास एक व्यक्ति को भेजा। उन्होंने उस व्यक्ति से केवल कुछ देर बात की और उसकी डिग्रियां और सर्टिफिकेट देखे बिना ही उसे जाने के लिए बोल दिया।

अगले ही दिन उनके पास एक और लड़का आया। उसके पास ना ज्यादा डिग्रियां थी, ना अनुभव। उसने उसे अपने बेटे के लिए रख लिया।

उसके दोस्त को जब यह पता चला तो उसने इसका कारण पूछा। अमीर आदमी बोला कि जिसे तुमने मेरे पास भेजा था वह आते ही तुमसे जान पहचान होने की बातें बताने लगा।

उसने एक बार भी अपनी योग्यता को बताना जरुरी नहीं समझा। लेकिन जिसे मैंने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रखा, उसने बिना बातों को घुमाए मेरे प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर दिया।

उसे खुद पर विश्वाश था कि उसे यह नौकरी मिल जाएगी और वह मेरे बेटे को अच्छे से पढ़ा पायेगा। यह बात सुनकर मित्र निरुत्तर हो गया।

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-: संतोष में सब सुख :-

एक बार भगवान बुद्ध पाटलिपुत्र में प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन के पहले बुद्ध ध्यानवस्था में बैठे हुए थे। तभी स्वामी आनंद ने जिज्ञासापूर्वक पूछा, ‘महाराज, आपके सामने बैठे लोगों में सबसे ज्यादा सुखी कौन हैं?’

अनौखी और ज्ञानवर्धक कहानियाँ
अनौखी और ज्ञानवर्धक कहानियाँ

तथागत पीछे देखते हुए बोले, ‘सबसे पीछे जो सीधा-सादा सा फटेहाल ग्रामीण आंखे बंद किये बैठा हैं, वह सबसे ज्यादा सुखी हैं।’

यह सुनकर सभी को आश्चर्य हुआ। लोगों ने कहा महाराज, बिना जाने आप कैसे कह सकते हो? बुद्ध ने कहा, ‘चलो मेरे पीछे पीछे। मैं तुम्हें इसका प्रमाण देता हूं।’

वे सब भीड़ के आखिर में पहुँच गए। बुद्ध ने वहां बैठे लोगों से पूछना शुरू किया कि उन्हें जीवन में क्या चाहिए? किसी ने धन को पसंद बताया तो किसी ने शोहरत को।

उन्होंने अंत में सबसे पीछे बैठे हुए व्यक्ति से पूछा, ‘भैया, तुम्हारी जीवन से क्या इच्छा हैं? तुम्हें क्या चाहिए।

सिर्फ आपका आशीर्वाद मिलता रहे। उसी में संतोषपूर्वक रह सकूं। आनंद को उत्तर मिल चुका था।

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-: जीवन का सार :-

एक शिष्य ने कबीर से पूछा विवाह अच्छा या सन्यास जीवन? कबीर बोले, ‘दोनों में जो भी हो उच्चकोटि का हो।’ यह कैसे महाराज?’

कबीर ने उसे अपने साथ ले लिया। दिन के बारह बज रहे थे। कबीर कपड़ा बुनने लगे। उजाला काफी था फिर भी कबीर ने अपनी धर्मपत्नी को दिपक लाने को कहा।

वह तुरंत जलाकर लाई और उनके पास रख गई। शाम को वे शिष्य को एक पहाड़ी पर ले गए। यहां ऊंचाई पर एक वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे।

कबीर ने साधु को आवाज दी। बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊंचाई से उतर कर नीचे आया। कबीर ने पूछा आपकी आयु कितनी हैं?

साधु ने कहा अस्सी बरस। यह कहकर वह फिर से ऊपर चढ़ा। कठिनाई से कुटी में पहुंचा। कबीर ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया।

‘आप यहां पर कितने दिन से निवास करते हैं? उन्होंने बताया चालीस वर्ष से।

चढ़ने-उतरने से साधु की सांस फूलने लगी, वह बुरी तरह थक गया परन्तु उसे क्रोध तनिक भी न था। दोनों का उदाहरण देते हुए कबीर बोले गृहस्थ बनना हो तो दोनों के प्रेम में पूर्ण विश्वाश हो, समर्पण हो और सन्यासी बनना हो तो दुर्व्यवहार, क्रोध का समावेश जीवन में बिल्कुल भी ना हो। यही जीवन का सार हैं।

तो प्यारे दोस्तों, कैसी लगी आपको ये अनौखी और ज्ञानवर्धक कहानियाँ? यदि पसंद आयी हो तो इसे अपने प्यारे दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। और आपको किस तरह की कहानियां पढ़ना पसंद हैं नीचे कमेंट करके जरूर बताये।

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Rakesh Verma

Rakesh Verma is a Blogger, Affiliate Marketer and passionate about Stock Photography.

2 Comments

Azmat guru · February 5, 2022 at 8:17 pm

वह आपकी तीनो कहानियां बहुत ही शानदार है। ग्रेट वर्क सिर

    Rakesh Verma · May 9, 2022 at 11:16 pm

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!

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