प्यारे बच्चों! कैसे हो आप सब? उम्मीद करता हूँ आप सब लाइफ में मजे कर रहे होंगे। आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ छोटी कहानी ज्ञान वाली। उम्मीद करता हूं ये कहानियां आपको जरूर पसंद आएगी।
तो चलिए कहानियों के सिलसिला को आगे बढ़ाते हैं।
3 Best छोटी कहानी ज्ञान वाली
-: तुच्छ और गुणवान :-
एक संत से एक बार एक व्यक्ति मिलने आया। उसने कहा कि महाराज मैं बहुत पापी हूं। मुझे उपदेश दीजिए। संत बोले, ‘अच्छा, एक काम करो। जो तुमको खुद से ज्यादा पापी, तुच्छ और बेकार वस्तु लगे तो उसे मेरे पास लेकर आओ।’
वह व्यक्ति वहां से रवाना हो गया। उसे सबसे पहले एक कुत्ता मिला। लेकिन संत द्वारा बताये गुण उसमें नहीं थे। वह स्वामिभक्त और वफादार था। वह थोड़ा आगे चला तब उसे के कांटेदार झाड़ी दिखाई दी।
लेकिन वह भी उसके मानकों पर खरी नहीं उतरी क्यूंकि कांटेदार झाड़ी का उपयोग खेत में बाड़ लगाने में होता हैं। जिससे फसलों की पशुओं से रक्षा होती हैं।
अब वह व्यक्ति आगे चलता गया। तब उसे रास्ते में गोबर मिला। गोबर आंगन लीपने और सुखाकर ईंधन के काम आता हैं। उसने सोचा कि यह मुझसे भी गया-बीता नहीं हैं।
वह व्यक्ति थक-हार संत के पास पहुंचा और बोला, ‘महाराज, मुझे अपने से तुच्छ और बेकार वस्तु नहीं मिली।’ संत ने उसे गले लगा लिया और उसे अपना शिष्य बना लिया।
शिक्षामंत्र :
जब तक गम दूसरों के गुण और अपने अवगुण देखते रहेंगे तब तक हमें किसी के उपदेश की जरूरत नहीं होगी।
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-: खास नसीहत :-
एक दौलतमंद सेठ के बेटे को अपनी धन-संपदा पर बड़ा अभिमान था। उसने अपने अंतिम समय में बेटे को बुलाकर कहा, ‘बेटा तू कुछ मत करना केवल मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में फटे हुए मोजे पहना देना।’
सेठ की मौत के बाद बेटे ने पिता की आखिरी इच्छा जताई। पंडितजी और बड़े बुजुर्गों ने उसे समझाया कि हमारे धर्म में मरने के बाद कुछ भी पहनाने की इजाजत नहीं हैं लेकिन बेटे की जिद थी कि पिता की आखिरी इच्छा पूरी हो।
बहस इतनी बढ़ गयी कि शहर के पंडितों को जमा किया गया। इसी माहौल में एक व्यक्ति आया और उसने बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत सौंपा। उसमें पिता की नसीहत लिखी थी।
‘मेरे प्यारे बेटे। देख रहे हो…. दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी बड़ी फैक्टरी और फार्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक साथ नहीं ले जा सकता।
तुम हो कि उनसे दिल लगाए बैठे हो। एक रोज तुम्हें भी मृत्यु आएगी, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपड़े में ही जाना पड़ेगा। अतः पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, धन को धर्म के कार्य में ही लगाना।’
बेटा समझ चुका था कि पिता उसे वास्तव में क्या शिक्षा देना चाहते थे।
शिक्षामंत्र:
जीवन में पैसा ही सुख का आधार नहीं, लोगों की मदद को बनाएं मिशन।
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-: कीमती रत्न :-
एक वृद्ध संत ने अपनी अंतिम घड़ी नजदीक देख अपने पास बुलाया और कहा, ‘मैं तुम्हें चार कीमती रत्न दे रहा हूं’ पूरी जिंदगी इनकी सहायता से अपना जीवन आनंदमय तथा श्रेष्ठ बनाओगे।
पहला रत्न- माफी : तुम्हें कोई कुछ भी कहे, तुम उसकी बात को कभी अपने मन में न बिठाना और ना ही उसके लिए कभी प्रतिकार की भावना मन में रखना, बल्कि उसे माफ कर देना।
दूसरा रत्न- भूल जाना: अपने द्वारा दूसरों के प्रति किए गए उपकार को भूल जाना, कभी भी किए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद न रखना।
तीसरा रत्न- विश्वाश: हमेशा अपनी मेहनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वाश रखना क्यूंकि हम कुछ नहीं कर सकते जब तक उस सृष्टि नियंता के विधान में नहीं लिखा होगा। परमात्मा पर किया विश्वाश ही तुम्हें जीवन के हर संकट से बचा पायेगा और सफल करेगा।
चौथा रत्न- वैराग्य: हमेशा यह याद रखना कि जब हमारा जन्म हुआ हैं तो निश्चित ही हमें एक दिन मरना ही हैं। इसलिए किसी के लिए अपने मन में लोभ-मोह न रखना।
मेरे बच्चों जब तक तुम ये चार रत्न अपने पास संभालकर रखोगे तुम खुश और प्रसन्न रहोगे।
और आखिर में,
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